कोई क्या जाने

इस भौतिकता की दुनियॉं मे, कल क्या होगा, कोई क्या जाने.
जहॉं नैतिकता ही लुुप्त हुई,उस जग का क्या हो, क्या जाने..

ऐ उपर वाले,तेरी रची, प्रकृति की दौलत, जग जाने.
जो दौलत है मानव निर्मित, गुण-अवगुण, मानव खुद जाने.॰

सब बने दिवाने हैं इनके,प्राय:सब ही,सब वो जाने.
यहॉं मित्र न कोई,पिता न कोई,न कोई भाई-बहन, जानें..

सर कलम किसी का कर देगें,मकसद दौलत पाना, जानें.
वो करेंगे क्या,दौलत इतनी,पूछो उनसे, वो ही जाने..

बस एक हवस केवल उनकी,कुछ इतर न इसके है, जानें.
बस हवस में सब कुछ हैं करते, कोई कर्म-कुकर्म न वे जाने..

है मात्र हवस मकसद उनका,हासिल ही करना, वे जानें.
इस भौतिकता की दुनियॉं मे, मानव मष्तिष्क विकृत, जानें..

यहॉ मौत भी बिकता, दौलत से,जरा ध्यान इधर दो, जानें.
ऐ उपर वाले, तुम्ही बता, अब क्या करना, तू ही जाने..

जहाँ ईष्ट बना ही हो दौलत,उस जहॉं का क्या हो, क्या जानें.
इस भौतिकता की दुनियॉ में,कल क्या होगा, कोई क्या जाने..

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