तमन्ना आसमॉं तक पहुंचते देखा है

अपनी जिन्दगी को ,उठते-लुढ़कते देखा है.
तमन्ना आसमॉं तक,पहुंचते देखा है..
कभी चाहत थी मेरी, कुछ चीज पा लेने की.
हसरत बडी़ थी,उड़ कर वहॉं तक जाने की..
आजमाइश न की हो,बात तो ऐसी नहीं.
कोशिश बहुत की, बात यह बिलकुल सही..
नहीं मै लॉंघ पाया,फासला ये दूरी को
बड़ा ही था बिवश तब,समझ मेरी मजबूरी को..
नहीं मै पार पाया,आजमा कर देखा है.
तमन्ना आसमॉं तक, पहुचते देखा है..
लगाई जोर हमने फिर, तनिक हिम्मत न हारी॰
लगाता ही गया,रखा अनवरत जोश जारी..
कभी गिरता फिसल कर,बहुत नीचे और ज्यादा.
उठ कर फिर संभलता,लगा कुछ जोर ज्यादा..
नहीं भय था तनिक,फिसल गिर जाने का.
धुन एक ही था तब ,सिर्फ चढ़ जाने का..
गिरते-उठते तो हमने,बार-बार ही देखा है.
तमन्ना आसमॉं तक, पहुचते देखा है..
सब जानते केवल मुसाफिर,पर कहॉ का?
कही कोई ठौर भी है, या करना कहॉ, क्या??
सभी अटकल लगाते,बात कुछ यूँ ही बताते.
जो भी बताते,अलग कुछ ही बताते.
माना रास्ता सारे अलग,दिशा अलग भी.
कुछ छोड़ कर,सब मार्ग तो है ही अलग ही..
गुमराह रहते खुद,करें गुमराह सब को.
रहते खुद फँसे और ,फॉसते भी अन्य सब को..
यही क्रिया युग-युगों से ,सुना और देखा है.
तमन्ना आसमॉं तक, पहुंचते देखा है..