कुछ कह नहीं पाता

बस देखता हूँ केवल, कुछ कर नहीं पाता।

कुछ चाहता हूँ कहना, पर कह नहीं पाता॥

सुनता हूँ नित्य, नई-नई बातें।

जुर्म-अत्याचार की वारदातें॥

हत्या, डकैती और एटीएम पर घातें।

कहीं चेन स्नैचिंग, तो कहीं अन्य करामातें॥

चोर-घूसख़ोर, नहीं शरमाते।

करते जम-जम कर, नई-नई बातें॥

धौंस जमाते, क्या-क्या कह जाते।

हरदम सबों को, चूना लगाते॥

मंत्री या संतरी, इनके पौकेट में रहते।

इनके कहे बिन, ये कुछ भी न करते॥

सिर्फ सुनता ही रहता, कुछ कर नहीं पाता।

कुछ चाहता हूँ कहना, पर कह नहीं पाता॥

सरकारी दफ़तर की, बात ही न्यारी।

रहती साहब से पिउन, तक हिस्सेदारी॥

टेबल मनी ऊपर, होती है भारी।

इसीलिए पोस्टिंग में, होती मारामारी॥

सब लूटते है मिल-जुल, जुर्मी हैं भारी।

मरती तो केवल है, जनता बेचारी॥

किसको कहें दर्द, अपनी लाचारी।

सब हैं मिले, कौन सुनता तुम्हारी॥

खुला राह आगे, बचा क्या है कोई।

सभी बंद हो गए, या है शेष कोई॥

सिर्फ सोचता ही रहता, निपट नहीं पाता।

कुछ चाहता हूँ करना, कर नहीं पाता॥

निकलें जो सड़कों पर, वहाँ भीड़ भारी।

मची है वहाँ भी, बड़ी धक्कामारी॥

पैदल बगल, बीच में हर सवारी।

फुटपाथ पर भी, बिकती तरकारी॥

सभी दौड़ते, कोई धीरे न चलता।

यही जिंदगी है, शहर की हमारी॥

लगाती सड़क पर, फर्राटे गाड़ी।

धुआँ-धूल जमकर, उड़ाती खटारी॥

शोर ऐसी मचाती, कर्कशा जैसे नारी।

सर पे उठाती, मुहल्ला ही सारी॥

मर्ज बढ़ता ही जाता है, घट नहीं पाता।

सुधारना तो चाहूँ, सुधर नहीं पाता॥

भ्रष्टाचार का आज, है बोलबाला।

अछूता बहुत कम, बचा दुनियावाला॥

लूटने में भिड़े, दूसरों का निवाला॥

निकले किसी का भी, चाहे दिवाला॥

रोकता भी न कोई, न कुछ कहने वाला।

मिलेंगे शाबासी, उन्हें देने वाला॥

इनकी गिनती बड़ी, और बढ्ने ही वाला।

क्या कलियुग इसे ही, कहते दुनियावाला॥

बस सोचता हूँ सिर्फ, समझ नहीं पाता।

चाहता हूँ कहना, पर कह नहीं पाता॥

जरा सोचिए, आज मानव कहाँ है।

पुरखे बंदर से ऊपर, बढ़ा ही कहाँ है॥

विज्ञान में बढ़ गए, पर मानवता कहाँ है।

दूसरों का जो सोचे, माद्दा कहाँ है॥

परहित में जिये, ऐसा जीवन कहाँ है।

दर्द दूसरे का समझे, वो दिल ही कहाँ है॥

जो संस्कृति थी अपनी, अब वो कहाँ है।

जो देता था खुश हो, वो दाता कहाँ है॥

ज्ञान देते थे जग को, वो गौतम कहाँ है।

चाणक्य कहाँ, जैन महावीर कहाँ है॥

बस ढूँढता हूँ हरदम, पर मिल नहीं पाता।

कुछ चाहता हूँ करना, कर नहीं पाता॥

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