बड़ा ही पावन, दूरद्रष्टा, विद्वजन का काम है।
संयमित, निष्पक्षता, पत्रकारिता तेरा नाम है॥
समाज का दर्पण सही तू, रास्ता सन्मार्ग का।
दर्शन, दिशा-निर्दिष्ट करना, धर्म तेरे कर्म का॥
समाज का प्रतिबिंब, जन-जन को दिखाना काम तेरा।
मार्ग, जिस पर चल बढ़ें, उसको बताना काम तेरा॥
स्वतंत्रता की जब लड़ाई, लड़ रहा था देश मेरा।
पत्रकारों ने कलम से, था निभाया साथ मेरा॥
पाबन्दियाँ तुम पर लगी थीं, पर न तू विचलित हुये।
बाधाएँ अगिणत झेल, पावन कर्म सब पूरे किये॥
लेखनी तेरी चली, तब देश यूं झंझा उठी।
देश में, जन-जन के मन में, देशभक्ति जाग उठी॥
देश की आजादी में, तेरा बड़ा ही हाथ है।
देश को विकसित बनाने, में दिया तू साथ है॥
देश तेरी महती सेवा, को कभी भूला नहीं।
अफसोस है, पर आज तेरा, पावन रूप वह दिखता नहीं॥
नैतिकता का अब पतन, दिखता है तेरे काम में।
दाग लगने लग गयी अब, तेरे पावन नाम में॥
क्या कमी है आ गयी, धूमिल हुआ यह नाम क्यों।
दामन तो तेरा साफ था, फिर लग गया यह दाग क्यों॥
क्यों तेरी निष्पक्षता पर, प्रश्न है लगने लगा अब।
संयम व तेरी दूरदृष्टि, पर है शक होने लगा अब॥
क्या अब नहीं दर्पण रहा तू, सच की जो सूरत दिखाये।
जैसी सूरत जिसकी हो, प्रतिबिंब पूरा जो दिखाये॥
क्या समय के साथ ढेरों, पड़ गये अब गर्द उन पर।
या मोह, लालच, बेईमानी, की पड़ी अब पर्त उन पर॥
क्या बेच डाले अस्मिता, तुच्छ धन के अंध लोभ में।
गिरवी दिया रख खुद को शायद, या तेरे कुछ लोग ने॥
गयी कहाँ निर्भीकता, तेरी कलम का ओज़ वह।
सच्चाई व ईमान पर, मर मिट जाने का मौज वह॥
ओज़ अब तेरी कलम में, क्या बचा कुछ है नहीं।
ज़मीर पूरी मर चुकी, या बच रही थोड़ी कहीं॥
दुनिया तुझे थी देखती, एक सत्यवादी रूप में।
पर रहे अब तू न वो, दिखने लगे विद्रूप में॥
समय है पर शेष अब भी, ईमान अपना फिर जगा।
देश-दुनिया के लिए, वह खोयी ताक़त फिर लगा॥
तोड़ मत मेरा भरोसा, कर भला फिर देश का।
पावन बड़ा हो कर्म तेरा, गौरव बनो फिर देश का॥