मुझे छोड़ तू चली गयी माँ, बीत गये अब कितने साल।
याद तुम्हारी गयी नहीं पर, एक दिवस भी, इकतीस साल॥
जब-जब तेरी याद है आती, मैं विभोर हो जाता हूँ।
तेरी यादों की दुनिया में, जाकर मैं खो जाता हूँ॥
सुकून बहुत मिलता माँ मुझको, तेरी मीठी यादों में।
जीवन के दुख घुल जाते, तेरी यादों के भादो में॥
कितने दुख झेले माँ तुमने, मेरे लालन-पालन में।
कौन से कष्ट थे नहीं सहे माँ, पल-पल जीवन यापन में॥
कितने बाधाओं को तुमने तोड़ा, तब मैं बड़ा हुआ।
तेरे ही आशीष से माँ, अपने पैरों पर खड़ा हुआ॥
नहीं दिए पर वक़्त क्यूँ माँ, मैं कुछ तो कर्ज़ चुका पाता।
तेरी सेवा-भक्ति कर माँ, जीवन सफल बना पाता॥
चली गई माँ मुझे छोड़कर, इस निर्मोही दुनिया में।
तेरे सा निःस्वार्थ प्रेम, क्या पा सकता इस दुनिया में॥
मुझे देख तुम पढ़ लेती थी, मेरे मन की बातें।
बिना बताए, जान जाती थी, दिल की सभी सदाएं॥
बिना तार के तार जुड़े थे, तेरे दिल के मुझसे।
मेरी कोई भी उलझन, छुप कहाँ सका कभी तुझसे॥
मंजूर नहीं था शायद उनको, जो ऊपर रहते हैं।
उनकी जो इच्छा होती, वे सदा वही करते हैं॥
मुझे अनाथ बना कर माँ, ये दुनिया छोड़ चली तुम।
अनायास और असमय ही, जन्नत को चली गयी तुम॥
हुआ प्रेम में कमी न, पर तूझे अपना धर्म निभाना था।
‘उसकी’ जो इच्छा थी, शायद ‘उसको’ मान दिलाना था॥
जब से छोड़ गयी माँ, सच में, पल-पल याद तू आती है।
तेरी वो प्यारी लोरी ही, हर रात को मुझे सुलाती है॥