दुनिया नाच रही मरकट सा, जाने कौन नचाता है।
नज़र न आता कोई मदारी, समझ नहीं मन पाता है॥
खोज रहा मैं जाने कब से, दुनिया के इस मेले में।
जिनसे पूछूं, सभी फँसाते, अपनी चाल-झमेले में॥
कभी किसी से पूछूं तो, राह दिखाता मंदिर का।
कभी कहीं कोई और बताता, मार्ग उधर है मस्जिद का॥
गिरिजाघर को कोई बताता, देखो दूर जो दिखता है।
गुरुद्वारे को कोई बताता, मार्ग इधर जो जाता है॥
सोचूँ, कितने धाम बताते, एक नचाने वाले का।
अलग-अलग सब नाम बताते, उस अदृश्य मदारी का॥
पर नहीं कोई कहता ऐसा, मैं उनको देखा करता हूँ।
मिलता हूँ, मिलकर उनसे मैं, बातें नित करता रहता हूँ॥
भक्ति-आस्था की बातें हैं, सब कह यही बताते हैं।
इन आँखों से नज़र न आयें, लोगों को समझाते हैं॥
क्यों अदृश्य हो, नज़र न आओ, नहीं सामने आते हो।
भला सभी का करते पर, क्यों दर्शन नहीं कराते हो॥
क्या कारण है, तुम ही जानो, मैं कह भी क्या सकता हूँ।
दिल में जो बातें उपजी, बस व्यक्त उन्हें कर सकता हूँ॥
पर यह दिल भी मेरा है क्या, जब संसार तुम्हारा है।
मैं क्या, ये जो है जग सारा, सब तो रचा तुम्हारा है॥
देख मुझे समझा दो आकर, मैं पूछूं या चुप हो जाऊँ।
मेरी उलझन तुझे पता है, तुझे और मैं क्या बतलाऊँ॥
देख बता दो, आकर मुझको, आगे नहीं बुलाऊंगा।
मिल जाएगी मुक्ति जग से, मोक्ष जो मैं पा जाऊंगा॥