अनमोल पल इस जिंदगी के, व्यर्थ क्यों जाने दिया।
समझा नहीं क्यों मोल, यूँ बर्बाद क्यों होने दिया॥
हर पल बड़ा अनमोल है, रुकता, न करता इंतजार।
नज़रों में इसके सब बराबर, कोई न रिपु, कोई न यार॥
एक ही नज़रों से हरदम, देखता सब को है यह।
भेद कुछ करता नहीं, समभाव देता सब को यह॥
पल-पल मिलाकर दिवस बनता, मास बनता, वर्ष भी।
सदियाँ हैं बनते, युग भी बनते, और बनते कल्प भी॥
पल बदलता, लौट कर फिर, वह कभी आता नहीं।
जो बीत जाता वक़्त, फिर से, लौट वह पाता नहीं॥
भागता रहता है आगे, बेफिक्र हो, ये वक़्त हरदम।
इस पर न कोई जोर, है निर्बाध ही बढ़ता ये हरदम॥
वक़्त है रुकता नहीं, कोई रोक भी सकता नहीं।
रुक गया जो वक़्त गर, ब्रह्मांड बच सकता नहीं॥
वक़्त के अनुकूल खुद को, ढालना है बुद्धिमानी।
विपरीत चलना वक़्त के, है मोल लेना परेशानी॥
वक़्त को पहचान कर, समुचित कदम जो है उठाता।
जिंदगी के इस सफर में, पूरी सफलता है वो पाता॥
व्यर्थ क्यों बर्बाद हो, पल-पल समय अनमोल है।
सत्कर्म में जो पल लगे, जीवन बने अनमोल है॥