मुक्तक-9

1.

संस्कार धर्म व जाति का, मोहताज नहीं होता।

प्रकृति की इस देन पर, किसी एक का अधिकार नहीं होता॥

हीरे भी हैं मिलते, कोयले की ही खदानों से।

अलहदा सा, इनका, कोई आशियाना नहीं होता॥

2.

सितारे क्या कुछ कहते हैं, नहीं मैं जानता।

लकीरें हाथ की, क्या कहती हैं, नहीं मैं जानता॥

क्या फर्क है पड़ता, इन्हें जानने, न जानने से।

मुझे है सिर्फ करना कर्म अपना, यही मैं जानता॥

3.

देश की शिक्षा व्यवस्था, आज कुछ दिशाहीन है।

शिक्षा संग, सदाचार का, संचार अति न्यून है॥

आज शिक्षा का, मानो, मकसद बदल चुका है।

बस पैसा कमाने का, यह मशीन बन चुका है॥

4.

पलकें बंद करने से, रात नहीं होती।

होठों के फरकने से, बात नहीं होती॥

ये सब प्रकृति के दिये उपहार हैं।

केवल मुर्गों के बांगने से, प्रभात नहीं होती॥

5.

हर नशा से बढ़कर है, दौलत का नशा।

बदल कर रख है देता, बंदे की मनोदशा॥

न जरूरत इसे पीने-खाने की, है ऐसा ये नशा।

लौकर में चाहे इसे कैद रख लो, फिर भी, कराता दुर्दशा॥