श्री हनुमान कथा
श्री रामभक्त, श्री हनुमान की गाथा गाता हूँ ।
आज पवनसुत हनुमान की कथा सुनाता हूँ ॥
अंजनीपुत्र थे केशरीनंदन, पवनपुत्र हनुमान।
भान न थी अपनी शक्ति की, न था उसका अभिमान॥
भूख लगी, तब आसमान में देखा सूरज लाल।
खाद्य समझ कर दौड़ पड़े, गए निगल समझ फल लाल॥
अंधकार छा गया जगत में, हुये सब जीव-जन्तु बेचैन।
वज्रास्त्र चलाया इंद्र, हुये बेहोश बाल हनुमान॥
खबर मिली जब पवन देव को, बेटे का हालत जाना।
हो गए कुपित, गुस्से में आ, प्रलय करने को ठाना॥
रुक गया पवन, थम गया समय, जो जैसे थे, सब रह गए।
अचल, सभी मूरत हों जैसे, बन कर मानो रह गए॥
हुये विकल सब देवगण, हुआ विकल पूर्ण संसार।
त्राहिमाम सब ओर मची, फिर ब्रह्मा किए विचार॥
देवगण जा विनय करो, तुम पवन देव के पास।
मुक्ति वही दिला सकते, कोई न दूसरा आस॥
पवन देव के पास पहुँच, सब किए साष्टांग प्रणाम।
विनय से खुश हो, पवन देव ने दिया क्षमा का दान॥
पवनपुत्र को देवों ने, वरदान बहुत दे डाला।
वज्र बना कर, और अन्य वर, भी उनको दे डाला॥
नटखट बहुत बड़े थे हनुमत, शांत नहीं रहते थे।
नटखटपन से साधु-संतगण, तंग रहा करते थे॥
एक बार तो एक संत को, तंग ऐसा कर डाला।
गुस्से में आ कर उन्होने, श्राप बड़ा दे डाला॥
श्राप दिया, अपनी शक्ति को, उन्हें भूल जाने का।
स्मरण कराये नहीं कोई तो, याद नहीं आने का॥
रोम-रोम में राम बसा था, और नहीं था कोई दूजा।
राम बिना कुछ अन्य न था, उनके जीवन की पूजा॥
अनन्य भक्त उनके जैसा, कोई हुआ, न कोई होगा।
जीवन भर सेवा करने का, सौभाग्य किसे कब होगा॥
शिव से हठ की बाल हनु, मुझे राम प्रभु दिखलाओ।
अयोध्या में दशरथनन्दन से, तत्क्षण मुझे मिलाओ॥
बने मदारी भोले शंकर, बन गए मरकट हनुमान।
डमरू लगे बजाने डम-डम, न सका कोई पहचान॥
पहुँच गए दशरथ द्वारे, थे राम सभी कुछ जान रहे।
दर्शन किए एक दूजे का, सिर्फ तीनों थे पहचान रहे॥
हुआ तमाशा खत्म, महल से लगा मदारी जाने।
ज़िद शुरू किया तब बालराम, हनुमत को दिया न जाने॥
शिव चले गए, रहे वहीं पवनसुत , भगवन को खुश करने करने को।
खेल नित्य थे दिखलाते, उनका मन बहलाने को॥
धीरे-धीरे गए राम बड़े हो, गुरुघर जाना, पढ़ने को था।
तब विदा किये हनुमान प्रभु को, वादा फिर मिलने का था॥
इंतज़ार कर रहे राम का, जाने दर्शन कब देंगे।
अवसर फिर सेवा करने का, जाने मौका कब देंगे॥
चलो बात ले चलते आगे, लंका जाने की बात करें।
हर चुका दशानन सीता को, उसके आगे की बात करें॥
जाना था किसी वीर दूत को, सीता का पता लगाने को।
कहाँ छिपाया सीता को, सब भेद वहाँ का पाने को॥
किसको भेजा जाये लंका, समझ नहीं आता था।
सागर पार करेगा कैसे, जटिल बड़ा लगता था॥
केवल शक्ति थी पवनपुत्र को, लांघ जलधि को जाने का।
लंका जा, सब काज पूर्ण कर, शीघ्र लौट फिर आने का॥
पर मुनिवर का श्राप लगा था, शक्ति याद नहीं आने का।
स्मरण दिलाये बिना न आए, उस पार जलधि के जाने का॥
जामवंत थे ज्ञानवान, हनुमत को बात बताया।
जा सकते सागर पार, शक्ति है, स्मरण उन्हें करवाया॥
याद पड़ी, तैयार हुये झट, लंका को जाने को।
दुश्मन के घर में घुस कर, माता का पता लगाने को॥
श्री रामचन्द्र आदेश दिये, जाओ लंका हनुमान।
कहाँ है सीता, कैसी है, सब आओ समझ कर जान॥
अंगूठी अपनी दी उनको, पहचान चिन्ह बनाकर।
रामदूत का सही भरोसा, देना उन्हें दिखाकर॥
मुंह में लेकर अंगूठी, और लंबी कूद लगाकर।
मिली मार्ग में बाधाएँ जो, उन सब को निपटाकर॥
सागर लांघ कर पहुँच गए, वे रावण की लंका में।
सीता कैद थी बनी पड़ी, बंध रावण के फंदा में॥
अशोक वाटिके कैद रखा था, सीता परम पुनीता को।
हो गई कांति थी लुप्त सभी, उस पावन परिणीता को॥
चुपचाप पवनसुत चढ़ बैठे, जिस तरु तल बैठी सीता।
मुद्रिका गिराया ऊपर से, देखी सीता भयभीता॥
नज़र पड़ी उस पर सीता को, देखी और पहचान गयी।
प्रकट हुये सम्मुख माता कह, बात सभी कुछ जान गयी॥
बोले, माता मैं दूत प्रभु का, भेद जान कर, जाना है।
जान भेद सारा रिपु का, अपने प्रभु को बतलाना है॥
बोली सीता, मयअसमंजस, अकेले क्या कर पाओगे।
राक्षस सब हैं बलशाली, जीत क्या उनसे पाओगे॥
दुविधा समझ गए तब हनुमत, अपना रूप बढ़ाया।
पर्वताकार बन कर माता का, दुविधा दूर कराया॥
चाहो तो माता अभी साथ, मैं लेकर जा सकता हूँ।
पर राम प्रभु की मर्यादा को, तोड़ नहीं पाता हूँ॥
आश्वस्त हुयी जब माता तो, खाने की आज्ञा मांगा।
खाया फलों को तोड़-ताड़, पूरी वाटिका उजाड़ा॥
भागे रक्षक देख उजड़ता, रावण को जा बतलाया।
आया एक अजूबा वानर, सब तहस-नहस कर डाला॥
क्रोधित हो कर रावण भेजा, अपने कुछ वीरों को।
जाओ, लाओ पकड़ के बंदर, वाटिका उजाड़ा उसको॥
जो आए, सब खूब पिटे, कुछ भयभीत हो भागे।
इंद्रजीत ब्रह्मास्त्र चलाया, हनु रखे गदा उनके आगे॥
ले गए पकड़ कर, पेश किया, रावण के उन्हें समक्ष।
क्या सजा उन्हें दे देनी है, सब मंत्री किए विमर्श॥
अवध्य दूत होते हैं, वध मत उनका करवाओ।
तय हुआ पूंछ में जूट लगा, अग्नि से उसे जलाओ॥
लग गया आग, हनुमत दौड़े, लंका में आग लगाया।
विभीषण का घर बचा सिर्फ, बाकी सब को जलवाया॥
जला कर सोने की लंका, सागर में पूँछ बुझाये।
फिर लौट गए अपने प्रभु को, जा कर सब कथा सुनाये॥
हो गयी प्रक्रिया शुरू युद्ध का, रावण से लड़ने का।
संगठित किया वानर सेना, लंका पर चढ़ जाने का॥
तरकीब सोचने लगे, सैन्यगण सागर कैसे पार करें।
नल, नील दो अभियंता मिल, सेतु का निर्माण किए॥
सेतु बन तैयार हुआ, वानर सेना सब पार हुये।
सेनाएँ दोनों पक्षों की, युद्ध करने को तैयार हुये॥
रणभेरी बज गयी, गया हो शुरू महारण भारी।
रावण के योद्धा बहुत मरे, कुछ हुये हताहत भारी॥
इंद्रजीत रावण का बेटा, तब लड़ने को आया।
थी शक्ति वाण-तरकश में, लक्ष्मण पर उसे चलाया॥
लगा वाण, मूर्छित लक्ष्मण, गिर पड़े धरा के ऊपर।
हाहाकार मच गया वहाँ, दुख हुआ राम के ऊपर॥
लगे विलापने बालक सा, दुख सहन नहीं होता था।
आ गए वैद्य, देखा लक्ष्मण को, उपचार कठिन लगता था॥
वैद्यराज ने कहा, बचा है केवल एक उपाय।
सुबह होने से पहले इनको, संजीवन मिल जाय॥
मिलती संजीवन केवल, धवला पर्वत के ऊपर।
पहचान सिर्फ है एक वुटि का, जलता दीप उसी पर॥
रावण था छली और मायावी, उसने कर दिया उपाय।
दूत भेज कर, हर पौधे पर, दीपक दिया जलाय॥
रामचन्द्र थे दुखी बहुत, सब योद्धागण थे मौन।
दूर बहुत है, समय अल्प, यह काम करेगा कौन॥
राम कहे, हनुमत केवल, यह काम तुम्हीं कर सकते हो।
लेकर संजीवन धवला से, समय पूर्व आ सकते हो॥
पवनपुत्र ने पवन वेग से, धवलागिरी किए प्रस्थान।
कुछ ही देर में गए पहुँच, पा नहीं रहे वुटि को पहचान॥
पर करामात रावण का, हर पौधे पर दीप जलवाया।
संजीवन का पेड़ यही, यह कहना बड़ा कठिन था॥
असमंजस में पड़े पवनसुत, क्या करें, समझ नहीं पाये।
था समय बहुत कम, अतः उन्होने धवला लिए उठाये॥
लेकर धवला उड़े पवनसुत, पुनः लंका की ओर।
मध्य मार्ग में मिला अयोध्या, भरत देखा उस ओर॥
उसने सोचा मन में अपने, दुश्मन तो नहीं है ऊपर।
आकाश मार्ग से आकर के, कहीं घात न कर दे हम पर॥
अतः चलाया वाण भरत, हनुमत नीचे गिर आये।
राम-राम का मंत्र सुनाई, उनके मुख से आये॥
सुने राम का नाम भरत जी, दौड़ पड़े उस ओर।
धवला लेकर पड़े थे हनुमत, पहुँच गए उस ओर॥
कहा, कौन हैं आप, मुझे अपना परिचय बतलाओ।
आकाश मार्ग से जाने का, मकसद अपना समझाओ॥
राम प्रभु का सेवक हूँ, हनुमत है मेरा नाम।
धवला लेकर जाना था, लक्ष्मण हैं पड़े अजान॥
दुखी बहुत हो गए भरत, बोले क्या मैं कर डाला।
सुबह होने से पहले, उनको है लंका पहुँचाना॥
अतः भरत हनुमत को, अपने कंधे पर बैठाए।
झटका एक लगा कर, फौरन, लंका को पहुंचाए॥
वैद्यराज झटपट संजीवन, धवलगिरी से तोड़ लिए।
कूँच-काँच, तत्क्षण ही मुंह में, लक्ष्मण जी के डाल दिए॥
संजीवन का असर हुआ, वे बैठ गए ऐसे उठ के।
मानव जैसे बैठा उठ, निद्रा अपनी पूरी कर के॥
संचार खुशी का फैल गया, खुश थे पुरुषोत्तम राम।
बजरंग बली, तुमने कर डाला, बड़ा अनोखा काम॥
बड़े प्यार से, हनुमान को, गले से गले लगाया।
भरत जैसा ही भाई हो तुम, ऐसा सब को बतलाया॥
फिर युद्ध शुरू हो गया, और वे रावण का संहार किए।
सीता माता को साथ लिए, अयोध्या को प्रस्थान किए॥
हनुमान चले गए संग उन्हीं के, सेवा उनकी करने को।
अपने जीवन का सारा मकसद, भी पूरा करने को॥
अनंत कथाएँ हैं उनकी, मैं थोड़ा कह पाया हूँ।
सागर अनंत हैं रत्न भरे, निकाल बहुत क्या पाया हूँ॥
ॐ श्री हनुमते नमः!