गंगा की सफाई

हल्ला और हुड़दंग है,

गंगा की करो सफाई।

बहुत दिनों के बाद है शायद,

बात समझ में आई॥

भाषण तो देते बड़े-बड़े,

सुनते सब बहन व भाई।

मंत्री-संतरी, नेता-संवेदक,

की होगी खूब कमाई॥

पाँच साल अब मौज मनाना,

जनता को भरमाना।

इधर-उधर की बात बता,

जनता को धैर्य दिलाना॥

भारत की जनता इतनी भोली,

समझ नहीं पाती है।

बात बना कर ख्वाब दिखाओ,

मोहित हो जाती है॥

नेता जनभावन मुद्दों को,

चुनावों में खूब भुनाते है।

मीठे-मीठे ख्वाब दिखा,

जनता को मूर्ख बनाते हैं॥

‘गंगा नदी को साफ करो’,

ये स्लोगन नया बना है।

पर आभासित होता जैसे,

चीज वही, बस पैक नया है॥

समय अत्यधिक न गुजरें हों,

पर साल अवश्य एक बीत गया।

गंगा-सफाई कब-कैसे होगी,

कोई ठोस उपाय न दिख पाया॥

चुपचाप बैठ कर देख रही,

जनता सब समझ रही है।

कुछ नेतागण की हाथ-सफाई,

को भी देख रही है॥

मंत्री-नेता ले कर झाड़ू, खुद,

अपने हाथ लगाये।

जहां साफ पहले से ही था,

झाड़ू वहीं चलाये॥

बहुत देर से आयी समझ में,

बापू जो कहते थे।

खुद कर अपनी साफ-सफाई,

जैसे, वे करते थे॥

साफ-सफाई सबका होना,

बातें बहुत जरूरी हैं।

मन जो स्वच्छ बने गंगा सा,

उससे भी अधिक जरूरी है॥

बात वही करते ज्यादा,

जो थोड़ा करते काम।

ढ़ोल पीट कर शोर मचाते,

चमकाते बस अपना नाम॥

अब देखें, और चार साल,

क्या-क्या होता है काम।

वादा किए जो, होंगे पूरे,

या फिर होगा जीना हराम॥