सम्पूर्ण धरा का दो तिहाई है,
जल ही जल,पर
मानवता,फिर क्यों हो निर्जल।
सागर का तो जल है खारा,
कुछ जल,हिमनदों में फंसा बेचारा।
शेष जो जल नदियों में आता,
धरती के जो गर्भ में जाता,
जल वही हमारे काम है आता॥
जल है, तो जीवन है रहता,
नदियां, झरनें और जंगल होता।
शांति, समृद्धि और सुख रहता,
मानव समाज का पोषण होता॥
बिन जल, जीवन शून्य है होता,
बिन जल कोई, कल भी न चलता।
बिन जल, विकास की गाड़ी थमती,
सभ्यता नहीं फिर आगे बढ़ती॥
आज के इस शहरी युग में, पर
जल का दोहन अंधाधुंध है।
शेष बचे, उपयोगी जल पर भी,
प्रदूषण का छाया गहन धुंध है॥
जल की उपलब्धता सीमित है,
पर जल पर भार असीमित है।
जल को अतः बचाना होगा,
जल के विभिन्न उपयोगों में,
मितव्ययिता अपनाना होगा॥
नदी और तालों के जल को ,
और उपयोगी संचित भूजल को,
कैसे स्वच्छ रखें व निर्मल।
उपाय अचूक बनाना होगा,
जल्द अमल में लाना होगा॥
जल मृदु जो सागर को मिलता,
मृदुता खोता, उपयुक्त न होता।
मृदु जल को संचित करना होगा,
सागर को मिल, ज़ाया न जाय,
कुछ ठोस उपाय अपनाना होगा,
जल्द अमल में लाना होगा॥
नदियों को उपयुक्त जगह पर,
घेर कर, बांध बनाना होगा।
जल-संचयन की क्षमता को,
अधिकाधिक बढ़ाना होगा,
जल-संकट सुलझाना होगा॥