1.डिग्रियों की पूछ थी हर जमाने में,
मज़ाक बन गई पर, इस जमाने में।
अब तो ये बिकने लगी हैं बाज़ारों में,
मची है, होड सी खरीददारों में॥
2.ईमानदारी बेचारी बनी, कहीं बैठी रोती होगी,
बिलकुल अकेली, न साथ कोई सहेली होगी।
बेईमानी का तो कहना ही क्या, अट्ठाहास करती होगी,
वह भी अकेली नहीं, संग उसके, बेईमानों की पूरी टोली होगी॥
3.आज ज़माने का अंदाज बदल गया,
गीत तो पुरानी है, पर साज बदल गया।
राग तो फिर भी बदलता है, बदल गया,
पर अफसोस कि सुननेवालों का मिज़ाज बदल गया॥