समय परिंदा पंख लगाए, उड़ता सदा गगन में ।
अथक, अनवरत, बिना रुके ही, चलता मस्त मगन में ॥
कभी न करता किसी का पल भी, इंतज़ार वह जग में ।
चाहे जो कुछ भी आ जाये, अवरोधक बन पथ में ॥
सब हैं समान उसकी नज़रों में, राजा, रंक, फकीर ।
नहीं खींचता समय कभी भी, ऐसी कोई लकीर ॥
समय बिठाता सिंहासन पर, समय चटाता धूल ।
कभी गले फूलों की माला, कभी गले में शूल ॥
समय-समय की बात अलग, है समय बड़ा बलवान ।
समय न रहता सदा एक सा, हो कोई इंसान ॥
बर्बाद न हो एक पल भी इसका, व्यर्थ न जाने पाये ।
विस्तार नहीं मिलता इसका, है कोई नहीं उपाय ॥
रुकता नहीं है पल भर भी यह, नहीं करता विश्राम ।
हर पल बढ़ता ही जाता है, नहीं इस पर कोई लगाम ॥
अतः समय के साथ चलो, जग में कुछ ऐसा काम करो ।
मानव जिससे आगे बढ़े, मानवता का संचार हो ॥
कुकर्म जहाँ अपयश देगा, और अगली पीढ़ी शर्म करेगी ।
सुकर्म वहीं चमकाएगा, और अगली पीढ़ी गर्व करेगी ॥