गौतम बुद्ध

कपिलवस्तु के राजघराने

में तूने था जनम लिया I

सिद्धार्थ पड़ा था नाम तुम्हारा

तूने कर्म महान किया II

न ठाठ राजसी था तेरा

केवल थे कर्म महान I

सदा लगा था रहता तेरा

सदाचार पर ध्यान II

जीवन में घटना कुछ ऐसी

देखा और गंभीर हुआ I

ध्यान लगा सोचा जो उनपर

आगे चल वही महान हुआ II

घटना यूँ नहीं अजूबा कोई

सदा घटा करता है I

मानव मरता जब, सजा ज़नाज़ा

मरघट तक जाता है II

नज़र पड़ी सिद्धार्थ की उसपर

बुलाया, पूछा,  ये क्या है I

चार व्यक्ति मिल ले जाते हो

बता, मामला क्या है II

बात बतायी उसने सारी

अच्छे से समझाया I

मानव मरता, है जाना पड़ता

बातें सारी बतलाया II

आगे देखा, एक भिखारिन

दिन-हीन  थी हालत उसकी I

पूछा उसके पास पहुंचकर

जानी सारी  बातें उसकी II

मन में घटनाएँ घर कर गयीं

ढेरों प्रश्न उठे मन में I

जाग उठी जब जिज्ञासा

मस्तिस्क लगा उनके हल में II

लगातार वे लगे सोचने

आखिर ये जीवन क्या है.…?

दुःख रहता मानव जीवन में

पर, दुःख का कारण क्या है.…??

इसी ज्ञान का भेद समझने

लग गए वे तन-मन से I

दिए त्याग सब राज -पाट

रजोगुण सारे त्यागे मन से II

कपिलवस्तु का राज सिंहासन

त्यागे पिता शुद्दोधन को I

माँ का प्यार तो खुद ही छीन गयी

त्यागे मासी माँ गौतमी को II

यशोधरा पत्नी को त्यागे

त्याग दिए राहुल सुत  को I

भौतिक सुख को त्यागे सारे

जोड़े  रचयिता से खुद को II

त्याग दिए, खुद पहुँच गए

फल्गु तट , गया के पास I

पीपल के नीचे आसन  मारे

ले कर ध्यान पिपास II

ध्यान लगाया अंतर्मन से

आत्मसमर्पण कर के I

ज्ञान मिला, बुद्धत्व मिला

तब बने “बुद्ध” बुद्धि पा के II

बचपन से मौसी गौतमी की

गोद  में पल कर हुए बड़ा I

आगे चल  इसलिए बुद्ध  का

गौतम बुद्ध था नाम पड़ा II

मार्ग दिखाया बुद्ध ने जो

वो बौद्ध धर्म कहलाया I

दुनिया भर में लोगों ने

दिल से इसे लगाया II

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म को

दिल से था अपनाया I

भारत से बाहर अन्य देश तक

इसको था फैलाया II

संघमित्रा को भार दिया था

बौद्ध धर्म फैलाने का I

इसके सारे गूढ़ तत्व को

लोगों तक पहुंचाने का II

जीवन दर्शन जो दिया बुद्ध  ने

जीने की राह बताया I

जीवन के हर गूढ़ मंत्र को

लोगों को समझाया II

काश जो तूने राह दिखाया

दुनिया उन पर चलती I

अमन -चैन की बंशी बजती

घर -घर घी के दीये जलती II