ऐ भारत के वीर पुत्र, मैं नमन तुझे करता हूँ,
श्रद्धा के फूल चरण पे तेरा, मैं अर्पित करता हूँ I
तीन दिसम्बर कितना शुभ था, जब तेरा था जनम हुआ,
जीरादेई नाम ग्राम का, तुझको पाकर धन्य हुआ I
धन्य हुई सारण की धरती, धन्य हुआ तब राज्य बिहार,
भारत माता धन्य हुई , बालक को पाकर हुई निहाल I
पले-बढे जीरादेई में, शिक्षा का प्रारम्भ किया,
उच्च विद्यालय पटना से पढ़, रौशन उसका नाम किया I
कलकत्ता से कॉलेजी शिक्षा, पाये वहाँ पर जाकर,
धन्य हुआ प्रेसिडेंसी कॉलेज, ऐसे शिष्य को पाकर I
विधि के स्नातक बने वहाँ से, पटना लौट शुरू किये वकालत,
पर बहुत दिनों तक नहीं कर सके, आ कर यहां वकालत I
बापू के सहयोगी बनकर, किया देश का काम,
लड़े साथ मिल-जुल कर के वे, आजादी संग्राम I
डंडा खाए, जेल गए, सत्याग्रह की करी लड़ाई,
रहे सदा वे साथ बापू के, जब तक चली लड़ाई I
वार्ता अंग्रेजों से करने, इंग्लॅण्ड पड़ा जाना था उनको,
संग में गांधी और जवाहर, साथ अन्य भी थे उनके I
वायुयान तब होता ना था, जल जहाज से जाना था,
इंग्लॅण्ड जाकर, वहाँ कोर्ट में, कुछ कार्य विधिक निपटाना था I
छः माह तब लग जाते थे, जल जहाज को जाने में,
यही एक साधन था केवल, इंग्लॅण्ड तक जाने में I
भूल हुयी, एक पत्र जरूरी, छूट गया था भारत में,
कैसे काम चलेगा उस बिन, पड़ गए सब दुविधा में I
पर जब राजेंद्र रत्न संग हो, हो तब कैसी चिंता,
अक्षरश: लिखवाया खत को, दूर किया सब चिंता I
हुआ देश आजाद, बने वे प्रथम सदर भारत के,
संविधान बनाने में सहयोगी, बने राष्ट्र भारत के I
इंसान बड़े सीधे-सादे थे, सादगी के थे मूरत,
नमन करेगा देश हमारा, सदा-सदा, हर सूरत I
देशरत्न राजेंद्र प्रसाद, तुम छोड़ चले गए हमको,
यह विधान दुनिया का है, कोई कैसे टाल सके इसको I
पर गए नहीं , हम देशवासी के दिल में सदा रहोगे,
जब तक देश रहेगा भारत, तुम भी अमर रहोगे I