१. तन्हाईयाँ सब को सताती होगी,
अच्छे-अच्छों को भी रुलाती होगी I
बेज़ार रोते होंगे, पत्थर-दिल वाले भी,
भले आवाज़ अंदर ही सिमट जाती होगी II
२. तन्हाइयों में जब तुम्हारी याद आती है,
बयाँ भी कर न सकूँ, कितना सताती है I
शीशे-सा दिल ये, चूर-चूर हुआ जाता है,
भूलना चाहूँ, पर ये यादें हैं, कि दिल से न जाती है II
३. दुख गैरों से मिले, दुनिया जानती है,
सुख अपनों से मिले, यही सब मानते हैं I
सितमगर हैं बड़े, जो अपने, नासूर बन जाते,
ज़िगर के पास रहकर, ज़िगर को बेंधते हैं II