राजनीति में लोग न आते, अब करने जनता की सेवा I
नहीं रहा वह भाव बचा, है पर उपकार व सेवा II
दिया जान फांसी पे चढ़ गए, खाए कितने गोली I
भिड़े रहे, गए मुख से निकला, इंकलाब की बोली II
जान गवाए गोली खाकर, या फांसी पर चढ़कर I
किया गुलामी मुक्त देश को, स्वयं यातना सह कर II
उजड़े कितने मांग के सिंदूर, खोये कितने लाल I
कितनों ने किये सर्वस्व न्योछावर, मन में नहीं मलाल II
भरा हुआ था जान-मानस में देश प्रेम का जोश I
जज्बा ये हर भारतीयों को, था किये हुए मदहोश II
किया समर्पण था खुद को, तब हम आजादी थे पाये I
भूल रहे हैं देशवासी, जो नव पीढ़ी अब के आये II
बचा नहीं अब देश प्रेम , का भाव जो पहले था जैसा I
बदल रहे धीरे-धीरे सब, अपना रंग ही खुद कैसा II
राजनीति में आते नहीं अब, जनता की सेवा करने I
अब आते हमे मुर्ख बनाकर, खुद अपना डाबर भरने II
डाबर बहुत बड़ा इनका, झोला जल्द न है भरता I
घोटाले करते बड़े-बड़े, फिर भी वह खाली ही रहता II
बच्चों का भोजन खा जाते, हैं खाते रोटी गरीबों का I
रक्षा सौदों को नहीं बख्सते, चाहे सौदा हो खेलों का II
कहाँ-कहाँ तक जाय कहा, बस मौका मिल जाय I
नहीं छोड़ते कभी किसी को, क्या-क्या बोला जाय II
हमें खंड में बाँट-बाँट कर, खाते स्वयं मलाई I
मूर्ख बनी जनता है लड़ती, न नेता करे लड़ाई II
रंगे भेड़िये रंग बदल कर, आते, हमे लड़ाते I
तरह-तरह का रंग बदल, जनता को मूर्ख बनाते II
नयी कहानी गढ़ते रहते, सुना- सुनाकर ठगते जाते I
वादों का अम्बार लगाकर, अपनी भाषण चटक बनाते II
भारत वासी तो होते ही, सीधे-सादे हैं इंसान I
कहता यही पुराण हमारा, है कहता यही कुरान II
भोला दिल है फंस जाता, बातोँ में इनकी आता I
घड़ियाली आंसू भी इनके, सच में हमे रुला जाता II
ठग लेते ये बात बनाकर, झूठे सपने हमे दिखाकर I
ढोंग रचाते बहुत तरह के, और नहीं तो कसमें खाकर II
ठग बहुत बड़े होते ये नेता, होते छलने में माहिर I
धूर्त हैं होते, छिपी नहीं, ये बातें हैं जग जाहिर II
सौर-मंडल में सूर्य एक, पर होते हैं ग्रहें अनेक I
वैसे ही आता बहुत समय पर, कोई सच्चा नेता एक II