जीवन में जल की बड़ी महत्ता, होती है ये जानो I
जल ही जीवन हर प्राणी का, होता है पहचानो II
हर जीव-जंतु, पेड़-पौधे, सारे निर्मित हैं सेलों का I
असंख्य सेल मिल रूप लिए धर , जीव-जंतु और पेड़ों का II
काफी जल मिल जाएगा, इन जीव-जंतु के सेलों से I
गया सूख लो समझ, उठा वह, इस दुनिया के मेलों से II
जल का देखो स्वयं सोच, एक पानी नाम पड़ा है I
उतर गया पानी जिसका, जी कर भी मरा पड़ा है II
कुछ कर्म गलत ऐसा हो जाता, हो जाते खुद पानी-पानी I
नज़र मिलाने में भी उनसे, लोग समझते हैं बे-पानी II
करवाना कुछ काम किसी से, पड़ता कभी चढ़ाना पानी I
द्वेष कभी करवा देते हैं, कभी चढ़ा कर उन पर पानी II
स्वप्न सुंदरी, रंग सांवली, चंचल-चपल हसीना I
मुखड़े से पानी छलक रहा, जैसे हो ज़री नगीना II
कभी-कभी तो उम्मीदों पर, ऐसा फिर जाता है पानी I
बड़े-बड़ों को तब तो समझो, आ जाता आखों मेंपानी II
देख, प्रदत्त प्रकृति ने की है, मुफ़्त जीव-जंतु को पानी I
फिर भी लोग खरीद-बेचते, बोतल में भर-भर कर पानी II
तीन भाग में पृथ्वी तल का, भरा हुआ है केवल पानी I
बाकी थल के एक भाग पर, त्राहि-त्राहि करता बिन पानी II
कभी बाढ़ लाकर लोगों को, परेशान करता पानी I
ग्रीष्म काल में लोग चाहते, पीने को ठंढा पानी II
गर्म लाल लोहे पर चढ़, करतब दिखलाता पानी I
स्वयं तरल है, पर लोहे को, सख्त बनाता है पानी II
धरती से चल कर आसमान, बन वाष्प पहुँच जाता पानी I
वाष्प गगन में बनकर बादल, वर्षा बरसाता है पानी II
ग्रीष्म काल में घास-फूँस सब सूख, झुलसते बिन पानी I
पुनः हरा कर देता उनको, बरस कर वर्षा का पानी II
वह मानव कभी न हो सकता, आँखों का पानी गिरा दिया जो I
बदतर पशु से भी होता, लोगों का खो सम्मान दिया जो II
स्वादिस्ट भोज्य का गंध मिले, मुंह में आ जाता पानी I
जुकाम लगे तो नाक उगलने, लग जाता झर-झर पानी II
वन, उपवन, जंगल, झाड़ी, सब हरे-भरे हैं पानी से I
नालें, नदियां, ताल, तलैया संचालित हैं पानी से II
कभी- कभी तो ऊधम मचाता, ऐसा बारिश का पानी I
जिधर देखिये, उधर दिखेगा, बाढ़ -बाढ़, पानी-पानी II
काम नहीं केवल इतना ही, बस कर पाता है पानी I
टर्बाइन को घुमा-घुमा, विद्युत पैदा करता पानी II
सुबह-सुबह झिलमिल-झिलमिल, दिखता पौधों के ऊपर पानी I
किरण लाल पड़ती, मोती भाषित होता ओस का पानी II
ऊँचे पर्वत की चोटी से, निर्झर बन कर चलता पानी I
आगे बढ़ मिल निर्झरणी से, विलय हो जाता सागर में पानी II